हरियाणा: सेमग्रस्त भूमि की बढती समस्या के लिए सरकार जिम्मेदार, नहरी जल का न्यायोचित वितरण है समाधान

हरियाणा: सेमग्रस्त भूमि की बढती समस्या के लिए सरकार जिम्मेदार, नहरी जल का न्यायोचित वितरण है समाधान

Problem of Saline Land

Problem of Saline Land

Problem of Saline Land: हरियाणा में नौ लाख एकड़ से अधिक भूमि सेम की चपेट में है। पिछले 24 सालों में केवल 28100 एकड़ भूमि का सुधार किया गया। अब इस भूमि को सेम मुक्त करवाने के लिए सरकार द्वारा वर्ष-2022 से योजना शुरू की गई है।  जिसमे एक लाख एकड़ के सुधार का लक्ष्य निर्धारित किया है, और पिछले दो वर्षो मे 28250 एकड़ भूमि के सुधार के सरकारी दावे भी किये गए है। 

 यह समस्या रोहतक, सोनीपत, झज्जर, भिवानी, फतेहाबाद, हिसार आदि जिलो में सबसे अधिक है। जबकि धान बाहुल्य जिले करनाल, पानीपत, कुरुक्षेत्र, कैथल, फरीदाबाद, यमुनानगर, पंचकूला आदि सेम की समस्या से लगभग मुक्त है। रोहतक में 61.47 और झज्जर में 40.77 प्रतिशत व सोनीपत में 32.95 और भिवानी में 13.19 प्रतिशत भूमि सेमग्रस्त है। 

हरियाणा मे कुल 1.10 करोड़ एकड़ भौगोलिक क्षेत्र में से 9.28 लाख एकड़ (प्रदेश की 8.99 प्रतिशत) भूमि सेमग्रस्त हो चुकी है। जो पिछले 60 वर्षो मे विभिन्न जिलो के बीच नहरी सिंचाई जल के पक्षपातपूर्ण सरकारी वितरण के कारण से लगातार बढती जा रही है। प्रदेश के सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग की वर्ष 2016 -17 की रिपोर्ट नहरी सिंचाई जल के पक्षपातपूर्ण सरकारी वितरण की पोल खोल रही है। 

हरियाणा की 2 मुख्य नहर प्रणालियो मे से, भाखडा  नहर प्रणाली के अन्तर्गत 14.27 लाख हेक्टेयर, जबकि पश्चिमी यमुना नहर प्रणाली के अन्तर्गत 7.76 (दिल्ली समेत) लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है। लेकिन राजनीतिक आधार पर नहरी सिंचाई जल के पक्षपातपूर्ण सरकारी वितरण के कारण कुल 23.04 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि सिंचाई क्षेत्र मे से लगभग 90 प्रतिशत नहरी सिंचाई जल का वितरण केवल 8 जिलो (हिसार, सिरसा, फतेहाबाद, भिवानी, रोहतक, सोनीपत, जींद, कैथल) मे किया जा रहा है। जबकि बाकि 14 जिलो मे प्रदेश के 65 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि सिंचाई क्षेत्र को मात्र 10 प्रतिशत नहरी सिंचाई जल उपलब्ध करवाया गया है। 

पिछले 6 दशको से, बिना भूमि स्थलाकृति व गहराई आदि को समझे और राजनीतिक कारणवश, पुराने हिसार और रोहतक जिलो मे लगातार बेतहाशा नहरी सिंचाई जल के वितरण की सरकारी पक्षपातपूर्ण नीति, इन क्षेत्रो मे सेमग्रस्त भूमि की समस्या लगातार बढा रही है। राजनैतिक और प्रशासनिक गलत और पक्षपातपूर्ण नीति के कारण से, हरियाणा पिछले दो दशको से कुछ क्षेत्रो मे भूजल गिरावट से उत्पन्न हुए गंभीर भूजल डार्क जोन संकट और बाकि क्षेत्रो मे बढते जलभराव से सेमग्रस्त भूमि जैसी जुड़वां समस्याएं से जूझ रहा है (संलग्न मैप)। जिसका बिना न्यायोचित नहरी सिंचाई जल वितरण किये, तकनीकी तौर पर कोई स्थाई समाधान सम्भव ही नही है। 

वर्ष-1966 मे हरियाणा की स्थापना के समय, प्रदेश के पुराने जिले करनाल, अम्बाला आदि मे काफी बडे क्षेत्र मे प्राकृतिक कारणो अत्याधिक वर्षा व यमुना नदी के जलभराव होने से सेमग्रस्त रहते थे । इसीलिए वर्ष-1969 मे भारत सरकार ने केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान की स्थापना करनाल मे की थी। जिसके तकनीकी अनुसंधान और हरित क्रान्ति दौर मे भूजल सिंचाई आधारित गेंहू-धान फसल चक्र को बडे स्तर पर अपनाने से वर्ष 1974- 2004 के दौरान लगभग 4 लाख हेक्टेयर सेमग्रस्त भूमि को सफलतापूर्वक सुधारा जा सका था। 

लेकिन दूर्भागय से मौजूदा सेमग्रस्त क्षेत्रो मे भूजल के खारेपन के कारण समस्या बहुत गम्भीर बन गई है। जिसके सुधार के लिए सरकार को त्वरित दिखावटी समाधान की बजाए, नहरी जल के न्यायोचित वितरण जैसे कडे राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले लेने की आवश्यकता है। जो प्रदेश की टिकाऊ कृषि के क्षेत्र और किसानो की आर्थिक स्तिथि मे स्थाई सुधार सुनिश्चित करने के लिए मील का पत्थर साबित होंगे ।  

डा. वीरेन्द्र सिह लाठर, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 
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